मिट गया दौर यज़ीदों का अब ज़माना मेरे हुसैन का है।

कानपुर 22 अगस्त मोहर्रम की 02 तारीख को खानकाहे हुसैनी में ज़िक्र ए शहीदाने कर्बला, नातख्वानी व दुआ हुई।
ज़ोहर की नमाज़ के बाद खानकाहे हुसैनी हज़रत ख्वाजा सैय्यद दाता हसन सालार शाह (रह०अलै०) की दरगाह पर ज़िक्र ए 
शोहदा ए कर्बला में खानकाहे हुसैनी के साहिबे सज्जादा ने कहा कि हज़रत इमाम हुसैन एक रोज मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलेहीवसल्लम की गोद में तशरीफ़ फरमा थे हजरत उम्मे फज़ल रजि० भी तशरीफ़ फरमा थी हज़रत उम्मे फज़ल रजि० ने देखा कि हुजूर करीम सल्लल्लाहु अलेहीवसल्लम के आखों से आंसू जारी हैं हज़रत उम्मे फज़ल ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह यह आंसू कैसे तब रसूलल्लाह ने फरमाया जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने मुझे खबर दी है कि मेरे इस बच्चे को मेरे उम्मत के कुछ बदबख़्त कत्ल कर देंगे जिब्राइल ने उस ज़मीन की मिट्टी लाकर दी है जहां पर यह बच्चा शहीद होगा रसूलल्लाह ने उस मिट्टी को सूंघा और फरमाया इस मिट्टी से बू ए कर्बला आती है वह मिट्टी हज़रत उम्मे सलमा रजि० को दे दी और फरमाया ए उम्मे सलमा इस मिट्टी को अपने पास रखो जब यह खून बन जाए तो समझना मेरा बेटा शहीद हो गया है हजरत उम्मे सलमा रजि० ने इस मिट्टी को एक बन्द शीशी में भर लिया और जब मैदान ए कर्बला में इमामे हुसैन शहीद हुए उस रोज यह मिट्टी बन्द शीशी में खून बन गई थी अल्लाह हो अकबर। ज़िक्र के बाद नातख्वानी हुई जिसमें अली के पसीने से फूल बनते है अली के नक्शे कदम से उसूल बनते है, लोग क्या जाने हज़रत हसन हुसैन का मर्तबा जिनकी सवारी खुद रसूल बनते है, मेरे घर में चिरागं जलते है आना जाना मेरे हुसैन का है, मिट गया दौर यज़ीदों का अब ज़माना मेरे हुसैन का है। हक हुसैन मौला हुसैन के नारे बुलंद हुए। खानकाहे हुसैनी के साहिबे सज्जादा इखलाक अहमद डेविड ने दुआ की ऐ अल्लाह कर्बला के शहीदों के सदके हमारे मुल्क को कोरोना वायरस से निजात दिला, मुल्क में अमनों अमान कायम रहे, दहशतगर्द का खात्मा करने, बुराइयों से बचाने की दुआ की।
ज़िक्र शोहदा ए कर्बला में इखलाक अहमद डेविड चिश्ती, मोहम्मद वसीम, गौस रब्बानी, मोहम्मद जावेद, अफज़ाल अहमद, एजाज़ रशीद, मोहम्मद हफीज़, मोहम्मद मुबश्शीर आदि लोग मौजूद थे।

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