कानपुर
एक लम्बे अरसे से महिलाओं को "स्वाबलंबी" बनाती चली आ रही है महिला समाजसेवी "मिथलेश गुप्ता" अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक विशेष चर्चा में अपने जीवन के अनुभवों को साझा करते हुए बुंदेलखंड क्षेत्र के उरई शहर में जन्मी मिथलेश गुप्ता (58) (शिक्षा एम ए समाजशास्त्र) ने बताया कि लगभग अपना आधे से ज्यादा जीवन वे महिला कल्याण में लगा चुकी हैं ।
उन्होंने बताया कि वे अपने परिवार की इकलौती बेटी हैं जिस कारण से उनकी परवरिश काफी अच्छे माहौल में हुई उनकी शिक्षा पर विशेष जोर दिया गया साथ ही उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की प्राथमिकता रही।
विवाह उपरांत उन्हें ग्रामीण क्षेत्र में रहना पड़ा जो कि उनके लिए एकदम नया माहौल था उस दौर में महिला शिक्षा का कोई विशेष महत्व नहीं था महिलाएं घर भीतर तक ही सीमित थी उन्हें बाहर निकलने की विशेष आजादी नहीं थी वें अपनी समस्याएं आवश्यकताएं यहां तक कि गंभीर बीमारियां भी किसी से साझा नहीं कर पाती थीं पड़ोस की महिला के साथ घटी एक घटना ने उन्हें भीतर तक झकझोर दिया तब उन्होंने अपने घर की चौखट लांग कर इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का काम किया और यहीं से उनके जीवन में एक नई शुरुआत हुई ।
इस वाकए के बाद उन्होंने विद्यालयों में जाकर बच्चियों को निडर एवं सशक्त बनाने के प्रयास शुरू कर दिए बच्चियों एवं उनके परिवार जनों से छोटी-छोटी घरेलू समस्याओं को जानकर उनका निस्तारण करना प्रारंभ किया धीरे-धीरे समय बीतता गया उन्होंने कई सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर बेटियों को हुनर एवं महिलाओं को रोजगार दिलाने का काम किया ।
25 वर्ष की आयु से शुरू हुआ यह सफर अनगिनत बेटियों और महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाकर सम्मान से जीना सिखा चुका है आज भी 58 वर्षीय मिथलेश गुप्ता के कदम नहीं थकते आज भी वे प्रतिदिन अपने इस कार्य पथ पर निरंतर अग्रसर हैं ।
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