अंतरराष्ट्रीय ई- संगोष्ठी में हुई चर्चा "लघुकथा एवं काव्यपाठ" से मिलता है मार्गदर्शन और संस्कार।


कानपुर
भारतवंशी अपनी-अपनी मातृभाषा के माध्यम से भारत की संस्कृति का कर रहें प्रचार-प्रसार।

 भारत उत्थान न्यास के तत्वावधान में ' अंतरराष्ट्रीय ई-संगोष्ठी का आयोजन वर्चुअल माध्यम से किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत अंजनी अग्रवाल द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुई। न्यास के राष्ट्रीय संरक्षक, डॉ. उमेश पालीवाल ने आशीर्वचन स्वरूप बोलते हुए कहा कि संपूर्ण विश्व में भारत हिन्दी साहित्य के माध्यम से अपनी प्राचीन साहित्यिक परंपराओं को पुनर्जीवित करने का कार्य कर रहा है। मुख्य अतिथि एंव हिन्दी कल्चर सेंटर, टोक्यो, जापान की अध्यक्षा, डॉ० रमा शर्मा ने न्यास के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि कहानी और कविताओं से समाज को उचित मार्गदर्शन और संस्कार मिलते हैं। संसार के अनेकों देशों निवास कर रहे भारतवंशी अपनी-अपनी मातृभाषा के माध्यम से भारत की संस्कृति का भी प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। विशिष्ठ अतिथियों में बेल्जियम के प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार, कपिल कुमार ने अपने रूस के संस्मरणों को रखते हुए कहा कि रूस के लोग भारत की भाषाओं को और उसकी संस्कृति को सीखने में बहुत रूचि रखते हैं। यहां रामलीला, संकीर्तन जैसी गतिविधियों में हिन्दी खूब बोली जाती है। श्री कपिल कुमार ने अपनी कविता
"ये बच्चे भी अब हक़ जताने लगे हैं,
कि आँखों से आँखे मिलाने लगे हैं,
जो तुतलाते फिरते थे चंद रोज़ पहले,
बड़ों से जुबाँ अब लड़ाने लगे हैं" सुनाकर खूब वाहवाही लूटी।
लंदन की मशहूर लेखिका एवं पत्रकार, शिखा वार्ष्णेय ने कहा हिन्दी भाषा, साहित्य और संस्कृति के प्रचार प्रसार हेत न्यास के प्रयास सराहनीय हैं। इस तरह की संगोष्ठी में एक सुखद अनुभव के साथ साथ विश्व के तमाम हिन्दी भाषी रचनाकारों एवं विद्वानों से मिलने का भी अवसर प्राप्त होता है। न्यू जर्सी (अमेरिका) से वीणा सिन्हा ने कहा कि बहुत ही भावुक एवं उत्साहित सा अनुभव कर रहीं हूँ, क्योंकि मुझे इस कार्यक्रम के माध्यम से अपने भारत देश से जुड़ने का शुभ अवसर मिल रहा है। उनकी पंक्तियाँ ‘ऐ वतन तेरे नाम का वजूद लिये, फ़ासले दूर तक हमने तय किये, दिल वहीं छोड़ आये तेरे लिये, जान बाक़ी तेरी दुआओं में जिये' को बहुत पसंद किया गया। विश्व विख्यात साहित्यकारा, शबीना अदीब ने "अंधेरों की हर एक कोशिश यहां न कम हो जाये, उजाले हर तरफ हों रोशनी का नाम हो जाये, मेरी कोशिश तो नफरत को दिलों से दूर करना है, मेरा मकसद है दुनिया में मुहब्बत आम हो जाये" कविता से सौहार्द और प्रेम का संदेश दिया। नीदरलैंड से डॉ० नीना शर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। भारत से डा० राजीव राज, इटावा, स्वर्ण ज्योति, पांडिचेरी, डॉ० मुक्ति शर्मा, कश्मीर, डॉ० गीता दत्ता सहरिया, असम, गीता शर्मा, मुम्बई, उमा सिंह, झांसी, अर्जुनसिंह 'चांद' ने भी अपनी रचनाएं सुनायीं। कार्यक्रम के अध्यक्ष, श्री बरेन सरकार ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में भावुक होते हुए कहा कि जिस तरह से सभी साहित्यकारों ने आनंद और प्रेम का सुंदर चित्रण अपनी कहानी, कविताओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है वह हमें और प्रेरणादायक साहित्य का सृजन करने के लिए प्रेरित करता रहेगा। संगोष्ठी में स्वागत भाषण एवं अतिथि परिचय डॉ० माहे तलत सिददकी, कृतज्ञता ज्ञापन, कृष्ण कुमार जिंदल व मंच संचालन सुजीत कुंतल ने किया। किया। यहां डॉ. नवीन मोहनी निगम, डॉ. मीरा सिंह, सरिता पाण्डेय, माधव तिवारी आदि उपस्थित रहे।

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