कानपुर
माहे मुबारक रमज़ान लोगों के प्रशिक्षण और इंद्रियों पर नियंत्रण पाने का महीना है, इसमें रोज़े जैसी इबादत से लोगों को कंट्रोल पावर हासिल होता है। अब जब रमज़ान के बाद शैतान खुल जायेगा और वह हमारी रमज़ान की कमाई को बर्बाद करने और प्रशिक्षण के असर को खत्म करके हमें फिर गुनाह करने के लिए उकसायेगा, ऐसे में अपने कर्माें व कमाई की हिफाज़त करें और रमज़ान की नेकियों को बर्बाद होने से बचायें। इन विचारों को आज अलविदे की नमाज़ के बाद जामिया महमूदिया अशरफुल उलूम के उस्ताद मौलाना फरीदुद्दीन क़ासमी ने व्यक्त किया। मौलाना ने फरमाया कि रमज़ान खत्म के क़रीब आ गया, 2 शबे क़द्रें बाक़ी हैं, एक सप्ताह से भी कम समय बचा है। रोज़ा, तरावीह, नमाज़, सदक़ात, ज़िक्र, तौबा, इस्तेग़फार के साथ रोज़ाना नमाज़ों में , इफ्तार व सेहरी के समय विशेषरूप से शबे क़द्र में खूब गिड़गिड़ाकर दुआ मांगे, अपने लिए , अपने घर वालों और निकट संबधियों के संक्रामक रोगों से हिफाज़त के लिए, मुल्क में अमन व चैन की स्थापना और नफरत फैलाने वालों की साज़िशों की नाकामी के लिए , जान ,माल, ईमान , इज़्ज़त आबरू की हिफाज़त और वैश्विक शक्तियों की गुप्त या खुलेआम की जा रही साज़िशों की नाकामी के लिए , जन्नत को पाने और जहन्नुम से हिफाज़त की दुआएं करें। दुनिया के बेकार कामों और बहस आदि में ना पड़कर उससे बचते हुए सोचें कि हम अल्लाह से कितना क़रीब हुए , हमारी लाइन कितनी दुरुस्त हुई और यह सोच पैदा करें कि हमको अल्लाह के हुक्म, नबी की सुन्नत और सहाबा व बुजुर्गाें के नक़्शे क़दम पर चलकर इंशा अल्लाह जन्नत पहुंचना है, जहन्नुम(नर्क) से और जहन्नुम (नर्क) ले जाने वाले सारे कामों से बचना है। बस अल्लाह के आदेशों और नबी की शिक्षाओं के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करना है।
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